Tuesday, October 19, 2010

मी मुम्बईकर.

मी मुम्बईकर
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खतरों से खेलने की
आदत सी पड़ गयी है
चलती बस पकड़ना
नशा देने लगी है
ट्रेन से घटती दूरी और
बढती दिल की धढ़कन
मजा देने लगी है
बम धमाकों की आवाज भी
अब नीद न तोड़ सकी है
खून से लथपथ चेहरे
जाने पहचाने लगने लगे है
फिर वही नाकाबंदी
रिवाज सा लगने लगा है
हाथ मे माइक  पकडे
जिन्दगी की रफ़्तार की
तारीफ़ करते  पत्रकार
बीमार से लगने लगे है
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मी मुम्बईकर..........आमची मुंबई

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